पता लगाईं कि कान से केतना चीज देख सकेनी.. *विवरण* - आईं हमनी के दादा-दादी के रेडियो के मूल्यन के दोबारा प्रस्ताव कइल जाव, जब आधा रात में हमनी के राष्ट्रगान सुनल गइल; जब हम पुरान वाल्व रेडियो के सामने रहनी आ जवन गीत प्रस्तावित रहे ओकरा के सुन के मंत्रमुग्ध हो गइल रहनी; जब हम अपना आसपास चुप्पी मंगले रहीं कि रेडियो पर ऊ लोग का कहत रहे. ई ऊ रेडियो ह जवना के हमनी के कमी बा आ ठीक उहे रेडियो ह जवना के हमनी का अपना पीछे आवे वाली पीढ़ियन के देबे के चाहत बानी जा.
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